
प्रदेश सहित सोलन-सिरमौर पर बिंदल का विशेष फोकस दे रहा बड़े बदलाव के संकेत
टीम एक्शन इंडिया/नाहन/एसपी जैरथ
राष्ट्रीय भाजपा तथा प्रदेश भाजपा कमानदार सहित प्रमुख नेताओं के साथ हुई बैठक के बाद माना जा रहा है कि प्रदेश भाजपा में जल्द बड़े परिवर्तन हो सकते हैं। बतौर मिशन 2024 ना केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा बल्कि प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल के लिए भी वर्चस्व की जंग है।ऐसे में एक बेहतर व्यवस्थापक और राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले प्रदेश अध्यक्ष बगैर बेहतर रणनीति के राष्ट्रीय अध्यक्ष के समक्ष तो गए नहीं होंगे। माना जा सकता है कि मिशन 2024 की सक्सेस स्टोरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ डिसकस कर लिया गया है। अब यहां बात आती है सुरेश कश्यप की तो अब उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया है।
इससे तो यह स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा का लोकसभा का टिकट कहीं और जा सकता है। बावजूद इसके कश्यप की छवि बेदाग रही है। जाहिर सी बात है बीते विधानसभा चुनावों में बैड परफॉर्मस और दबाव और तनाव बनाने वाले नेताओं और कार्यकतार्ओं को संगठन में अब हाशिया मिलना भी तय माना जा सकता है। वही बतौर विपक्ष जिस प्रकार पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और डॉक्टर राजीव बिंदल मात्र कुछ ही महीनों में कांग्रेस पर तनाव बना पाने में भी कामयाब होते नजर आ रहे हैं। चुनावी गारंटीयों से लेकर पूर्व सरकार के कार्यकाल में हुए अप्रत्याशित विकास कार्यों को लेकर और केंद्र की प्रदेश के प्रति हल्की सी बेरुखी ने जनता जनार्दन को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। ऐसे में भले ही कांग्रेस को कर्मचारियों का समर्थन मिल गया हो मगर तुलनात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो आम जनता पशोपेश में भी नजर आ रही है। ऐसे में बनी हुई परिस्थितियों के मद्देनजर भाजपा खासतौर से डॉ राजीव बिंदल की बात की जाए तो वह कोई भी मौका अब चूकने नहीं दे सकते। मजे की बात तो यह है कि जब से डॉक्टर राजीव बिंदल प्रदेश अध्यक्ष की कमान पर फिर से बैठे हैं तब से उछल कूद करने वाले अवसरवादी नेता और कथित नेता खुद-ब-खुद अगलें बगलें झांक रहे हैं।
माना जा सकता है कि डॉ राजीव बिंदल सबसे पहले अपने दोनों प्रमुख रण क्षेत्रों को मजबूत कर बतौर रोल मॉडल प्रदेश का संगठन तैयार करेंगे। हालांकि जब डॉक्टर राजीव बिंदल पहली बार अध्यक्ष बने थे तो पांवटा साहिब में उन्होंने बड़ी मजबूत संगठन की बुनियाद डाली थी। बाद में पैदा हुई परिस्थितियों के चलते भले ही वह प्रदेश अध्यक्ष ना रहे मगर संगठन में अभी तक अधिकतर वही नेता व पदाधिकारी रहे जिन्हें डॉक्टर बिंदल ने बनाया था। तो वही बीते विधानसभा चुनाव में संगठन और सरकार मे भाजपा के पुराने और प्रमुख सिपाहियों के प्रति रही बड़ी खामियों को लेकर भी नए संगठन में डैमेज कंट्रोल हो सकता है। अभी-अभी सोलन की बात की जाए तो डॉक्टर बिंदल भरत साहनी और शैलेंद्र गुप्ता रविंद्र परिहार तथा कुमारी शीला में से किसी को भी जिला की कमान सौंप सकते हैं। अब यदि भरत साहनी की बात की जाए तो उनकी पत्नी 6 नंबर वार्ड से पार्षद भी है। खुद भी वह पार्षद रह चुके हैं मौजूदा समय वह मंडल महामंत्री हैं। गुलेरिया जी के साथ उनके अच्छे संबंध माने जाते हैं। और कांट्रेक्टर शिप को लेकर वह सत्ता पक्ष के खिलाफ जल्दी से मोर्चा नहीं खोल पाएंगे और विराज वहीं यदि बात की जाए शैलेंद्र गुप्ता की वार्ड नंबर 9 के पार्षद है।
देखा जाए तो अगर बीते विधानसभा चुनाव में और नगर निगम के चुनाव में इनकी बेस्ट परफॉर्मेंस रहती तो संगठन को मजबूती मिलती। ऐसे में पांचों विधानसभा क्षेत्रों में बेहतर पकड़ रखने के साथ संगठन का अच्छा तजुर्बा पूर्व में मंडल अध्यक्ष रह चुके रविंद्र परिहार को माना जाता है। परिहार रविंद्र परिहार भाजपा राज्य कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं और संगठन में मजबूत पकड़ रखते हैं। नगर निगम पर कांग्रेस का कब्जा है और इस विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के धनी राम शांडिल मंत्री भी हैं। कुछ भाजपा के अपने ही दिग्गज नेताओं की वजह से यहां भाजपा पूरी तरह से बैकफुट पर है। ऐसे में रविंद्र परिहार के साथ-7 कुमारी सुशीला जोकि जिला परिषद की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं और राजनीति का भी अच्छा तजुर्बा होने के चलते संगठन को भी बेहतर चला सकती हैं। शीला बरहाल कुछ तो ऐसे भी हैं जो डॉक्टर राजीव बिंदल के फिर से फॉर्म में आने के बाद खुद-ब-खुद दुबके पड़े हैं। बावजूद इसके डॉ राजीव बिंदल ने अपनी तमाम रणनीतियों में सुधार करते हुए बदले की भावना को छोड़ संगठन को और अधिक मजबूत करने पर फिलहाल ज्यादा ध्यान दिया हुआ है।
अब यदि सिरमौर की बात की जाए तो पूर्व अध्यक्ष भी इसी जिला से ताल्लुक रखते हैं सांसद भी है संभावित प्रत्याशी भी हैं। सिरमौर में सिर्फ 2 विधानसभा क्षेत्र ही भाजपा के लिए चुनौती हैं जिनमें से एक श्री रेणुका जी और दूसरा शिलाई विधानसभा क्षेत्र है। नाहन विधानसभा क्षेत्र में भले ही कांग्रेस के विधायक हो मगर मौजूदा समय बदली परिस्थितियां कुछ और ही है। कांग्रेस में गहराते मतभेदों के चलते मिशन लोटस की शुरूआत भी सिरमौर से हो सकती है। ऐसे में सिरमौर में भाजपा के संगठन को लेकर भी परिवर्तन की आहट काफी तेज है। बीते 5 साल हाशिए पर रहे और रूठे हुए को मनाना भी जरूरी है। वही कुछ पुराने भाजपा दिग्गज घर वापसी की भी तैयारी के लिए बेताब है। इतना तो तय है कि मौजूदा भाजपा अध्यक्ष भले ही एक बेहतर रणनीति कार हो मगर फिर से अध्यक्ष पद पर रहेंगे इसको लेकर कुछ संशय है।