वाटर सेस मामला: हिमाचल को पानी के उपयोग पर उपकर लगाने का पूरा अधिकार
टीम एक्शन इंडिया/शिमला/चमन शर्मा
हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार द्वारा राज्य में चल रही पनबिजली परियोजनाओं पर वाटर सेस लगाए जाने के मुद्दे पर पंजाब और हरियाणा द्वारा भौहें चढ़ाए जाने के बाद हिमाचल ने भी इन दोनों राज्यों को आंखें दिखाई है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वीरवार को विधानसभा में स्पष्ट किया कि हिमाचल को अपनी सीमा में पानी पर वाटर सेस लगाने का पूरा अधिकार है, क्योंकि पानी राज्य का विषय है। उन्होंने साफ किया कि हिमाचल में वाटर सेस अपने राज्य में बनी पनबिजली परियोजनाओं पर लगाया है, न कि पंजाब और हरियाणा की सीमा में बहने वाले पानी पर। ऐसे में पंजाब सरकार का यह कहना कतई तर्कसंगत नहीं है कि हिमाचल सरकार का वाटर सेस लगाना गैर-कानूनी है।
मुख्यमंत्री सुक्खू ने कहा कि हिमाचल देश का पहला राज्य नहीं है, जिसने पनबिजली परियोजनाओं में उपयोग हो रहे पानी पर वाटर सेस लगाया है। इससे पहले वर्ष 2013 में उत्तराखंड और वर्ष 2010 में जम्मू-कश्मीर ने भी अपने-अपने राज्य में वाटर सेस एक्ट पारित किया है। उन्होंने कहा कि हिमाचल पहाड़ी राज्य है और यहां आय के सीमित साधन हैं। ऐसे में राज्य को अपने आय को स्रोतों को बढ़ाने का पूरा अधिकार है। मुख्यमंत्री ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार पानी राज्य का विषय है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश सिंधु जल संधि 1960 को मान्यता देता है और प्रदेश सरकार द्वारा पनबिजली उत्पादन अधिनियम 2023 पर हिमाचल प्रदेश जल उपकर उक्त संधि के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है क्योंकि जल उपकर लगाने से न तो पड़ोसी राज्य को पानी छोड़े जाने पर कोई प्रभाव पड़ता है और न ही नदियों के प्रवाह पैट्रन में परिवर्तन होता है। सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि यह अध्यादेश किसी भी तरह से इंटर स्टेट रिवर डिसप्यूट एक्ट 1956 या किसी अन्य समझौते के प्रावधानों का उल्लंघन भी नहीं करता है। उन्होंने कहा कि हिमाचल द्वारा वाटर सेस लगाए जाने से पड़ोसी राज्यों के अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जहां तक बीबीएमबी का संबंध है, तो इस पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान का ही नियंत्रण नहीं है, बल्कि हिमाचल का भी हिस्सा है। ऐसे में बीबीएमबी की परियोजनाओं में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा लगाए गए जल उपकर का भार पांच राज्यों के साथ-साथ हिमाचल पर भी समान रूप से पड़ेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि बीबीएमबी की भाखड़ा बांध पनबिजली परियोजना के कारण 60 वर्ष पहले उजड़े लोगों का अभी तक पुनर्वास नहीं हुआ है। यही नहीं, बीबीएमबी की परियोजनाओं के कारण पर्यावरण और सामाजिक प्रभावों का आज तक आकलन नहीं हुआ और इन सभी मुद्दों के हल के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। इसके चलते स्थानीय आबादी को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल में बीबीएमबी के जलाशयों ने न सिर्फ कृषि और बागवानी की भूमि को निगला है, बल्कि इन जलाशयों से यातायात साधन भी प्रभावित हुए हैं और पानी के जल स्रोत भी जनमग्न हो गए हैं। यहां तक कि धार्मिक स्थल और शमशान घाट भी डूबे हैं। उन्होंने कहा कि आज भी लोगों को दशकों बाद क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन कृषि, बागवानी और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इन सभी परियोजनाओं ने जलाशयों के आसपास मानवीय जीवन को पूरी तरह प्रभावित किया है।